Love is a mystery. Love is unitive. Love is how we connect as human beings with one another and with the whole universe together. Love is how we learn, become better, and make the world a better place to live for us and others. Love needs freedom to breathe, equality to thrive, and openness to flow and grow. Love is personal, political, philosophical, sexual, social, historical, metaphysical, transcendental, et al. Sadly, we have only one word to describe such a complex emotion. The ancient Greeks had six different words, but even that’s not enough. 2021 taught me new ways to describe the complexity of love and its various hues. Love lost on many counts, but it miraculously sprang on a few occasions like a phoenix. My LOVE vocabulary was defined and redefined by people who touched my life one way or another this year.
shillpi a singh
LOVE IS FRIENDSHIP: Aashish Juyal
… a letter for my dearest friend, Aashish

मैंने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है
LOVE IS FRIENDSHIP: Aashish Juyal
प्रिय आशीष,
बचपन में तुम्हारी शैतानियाँ। लड़कपन में तुम्हारी इश्क़ की कहानियाँ। और फिर जवानी में तुम्हारे हाथ की बनी मिठाइयाँ। आज बहुत याद आ रही है तुम्हारी, दोस्त ।
पिछले कुछ सालों में आदत सी हो गयी थी तुम्हारी बतकही की। चाहे तुम कितना भी व्यस्त रहते थे, चाहे दुनिया के किसी भी कोने में होते थे, पर हर दूसरे दिन एक बार फ़ोन खटका ही दिया करते थे, कभी हाल-चाल जानने के लिए, कभी कुछ बताने के लिए, कभी अपना दिल हलका करने के लिए और कभी मेरी बेवजह वाली बकवास सुनने के लिए । तुम्हारे इंडिया लौट आने के बाद तुमसे हर अगले दिन बात हो जाया करती थी।और बातें भी क्या हुआ करती थी बस यूँ ही इधर-उधर की बकर, बेवजह की हंसी-ठिठोली और कुछ दूर एक साथ बचपन के शहर की यादों में खो जाना। बहुत अच्छा लगता था । आज फिर तुम्हारी कमी बहुत ज्यादा महसूस हो रही है क्यूंकि तुम्हारे जैसा और कोई नहीं था और न होगा, आशीष।
तुमने उस दिन (चार अप्रैल) को कितनी बड़ी धमकी दी थी मुझे, याद है तुम्हें? “अगर आज तू मुझसे मिलने सोहना नहीं आयी तो मैं तुझसे ज़िन्दगी भर फिर कभी बात नहीं करूँगा! याद रखना, शिल्पीजी (इस नाम से सिर्फ तुम ही बुलाते थे मुझे)।” तुम और तुम्हारी इमोशनल ब्लैकमेलिंग ! इनके सामने मेरी क्या बिसात। दिन के बारह बजे थे और फ़ोन पर तुम्हारी धमकी सुनकर मेरे दिल में बारह बज गए। फिर क्या था। तुमसे फिर कभी न बात करने से बड़ी और कोई सज़ा नहीं हो सकती है मेरे लिए, मेरे दोस्त। तुम्हें फ़ोन कर बता दिया कि हम सब आ रहे हैं। तुरंत बच्चों को तैयार करवा कर हम सपरिवार तुम्हारे आदेशानुसार सोहना के लिए रवाना हो गए। तब तक दोपहर के दो बज गए थे। दूरी बहुत ज्यादा थी। तुम हर दस मिनट के बाद पूछ रहे थे, “अब कहाँ?” “और कितनी दूर?” “कब पहुँचोगी?” आज सब कुछ बहुत याद आ रहा है।
पौने चार बज गए थे हमें सोहना पहुँचते-पहुँचते और हम चारों को वहां देख तुम कितने खुश हुए जैसे एक रूठे हुए बच्चे के हाथ में उसकी प्यारी चॉकलेट थमा दी हो किसी ने और उसे पा कर उस बच्चे की बांझे खिल गयी हो। तुमने दोनों बच्चों कि जिम्मेदारी मेरे हाथों से ले ली और मुझे हिदायत दी, “अब तू सिर्फ रिलैक्स कर। यहाँ बैठ, और सिर्फ खा-पी।” शायद यह कह कर तुम मुझे आने वाले तूफ़ान से जूझने के लिए तैयार कर रहे थे। तुम्हारे साथ बच्चों ने खूब मस्ती की। आज भी उन्हें तुम बहुत याद आते हो। तुमने उन्हें चॉपस्टिक से नूडल्स खाना सिखाया और यह शायद उनके लिए एक अनमोल सीख है। और हमेशा रहेगी।
हम तुम फिर यूँ ही शाम की हलकी धूप में बैठकर हमेशा की तरह फिर से बकर करने में जुट गए। कितने देर तक यूँ ही बैठे रहे। तुमने मेरी वाली कड़क चाय बनवाई और प्यार से एक नहीं दो कप मेरे लिए मंगवाई।वह शाम, तुम और तुम्हारी बातें आज बहुत याद आ रही हैं।
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दीवार पर एक काली छिपकली देख कर तुमने हाउसकीपिंग वाले बन्दे को बुला कर खूब डांटा और शायद उसके आने से पहले तुम्हारे गुस्से से डर कर वह छिपकली तुरंत गायब भी हो गयी थी । मैंने हंस कर तुम्हें बताया कि दो दिन पहले मुझे और अजय को सपने में छिपकली खुद पर रेंगती दिखी थी। तुम भी हंस कर बोले, “और तू डर गयी?” मैंने कहा, “नहीं, पर कहते हैं कि ऐसा सपना देखने से इंसान की जान को खतरा होता है।” तुम और जोर से हंस कर मेरी खिल्ली उड़ाने लग गए।
बात आयी गयी कर तुम हमें पूल के पास ले गए। दिन खत्म होने को था पर तुम्हारी कहानियाँ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बचपन-जवानी-बुढ़ापा (क्यूंकि हम और तुम हमेशा एक-दुसरे से यह कह कर अपनी ४०+ उम्र का मजाक उड़ाते थे) तुमने मुझे तीनों पड़ावों के बहुत सारे किस्से सुनाये थे उस दिन । आज भी सब कुछ याद है।
बातों-बातों में तुमने अपने युवा सहकर्मी की कुछ दिन पहले (ग्यारह मार्च) को सड़क दुर्घटना में हुई मौत के बारे में बताया। तुम उसके अचानक यूँ ही चले जाने से बहुत दुखी थे। यह कहते-कहते तुम्हारी बड़ी-बड़ी भूरी आखें आंसुओं से भर कर धुंधली हो गयीं थी । आंसुओं को तो तुमने किसी तरह रोक लिया पर तब तक तुम्हारी आवाज ने धोखा दे दिया। उस सहकर्मी के पार्थिव शरीर को देख कर उसकी माँ की हालत बताते हुए तुम जैसे फिर से टूट गए थे। ऐसा लग रहा था कि तुम्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वो अब फिर कभी लौट कर नहीं आएगा। तुम्हें क्या पता था कि आज मेरी भी वही हालत है।
शाम हो चली थी। हमने भी तुमसे घर जाने की अनुमति मांगी। तुमने साथ में मेरा वाला चॉकलेट केक, मिठाइयों का डिब्बा और मीठी यादों के साथ हमें विदा किया।आखरी बातचीत में साथ में ऋषिकेश जाना तय हुआ था।इस बात पर तुमने कहा था, “पक्का, पक्का।” याद है न, तुम्हें? पर तुम तो अकेले ही चले गए। तुम्हें शायद अनहोनी का पूर्वाभास हो गया था पर मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हुआ है तुम्हारे नहीं होने का।
अगले दिन तुमने शाम को पांच बजे के करीब फ़ोन कर पूछा, “तू रिलैक्स हुई। आजा फिर। बच्चों की चिंता मत कर। मैं उनकी देखभाल कर लूँगा। तू सिर्फ अपना ख्याल रख। बस खुश रह।” मैंने कहा, “अरे, कल ही तो आई थी सोहना। अब कल फिर आ जाऊँ?” हम-तुम यूँही फिर थोड़ी देर बकर करते रहे और जल्दी मिलने का वादा करके फ़ोन रख दिया। बस शायद यह पूर्णविराम था। मेरे और तुम्हारे लिए।
उसी हफ़्ते हम-तुम बीमार पड़े। दिव्या को मैंने अचानक आठ तारीख को फ़ोन किया तो तुम्हारी तबियत के बारे में मालूम हुआ। ऐसा हमेशा होता था कि जब भी तुमसे बात नहीं हो पाती थी तो उससे तुम्हारा हाल-चाल पूछ लिया करते थे। पर उस दिन क्यों तुम्हें नहीं पर उसे फ़ोन लगाया यह समझ नहीं आया। तुम्हारी तरह, तब तक हम भी सपरिवार बुख़ार कि चपेट में आ गए थे। फिर दस तारीख को दिव्या से यह पता चला कि तुम्हारा कोविड टेस्ट नेगेटिव है तो बहुत राहत मिली। पर यह फाल्स नेगेटिव था। हमने तब तक टेस्ट नहीं करवाया था। ग्यारह को रविवार होने कि वजह से गुरुग्राम में सभी लैब बंद थे तो हम सपरिवार बारह तारीख को टेस्ट करवाने गए।
वहां से वापस घर पहुंचे ही थे कि दिव्या का कॉल आया। पर कॉल मिस हो गया। तब तक दोस्तों के मेसेजस आने लगे। पर यकीन नहीं हुआ। तुम चले गए थे। दूर, बहुत दूर। अपना वादा तोड़ कर। दिव्या, अभिनव और अर्णव, मीनू को अकेला छोड़ कर। तुमने कहा था कि अगर मैं तुमसे मिलने नहीं आई तो तुम मुझसे बात नहीं करोगे पर मैं मिलने तो आई थी उस दिन पर तब भी तुम मुझसे अब कभी बात नहीं करोगे। ऐसा कोई करता है क्या, दोस्त? मुझे इतनी बड़ी सजा दे दी ? क्यों?
तुम्हारी याद में,
शिल्पी
(वर्तनी और व्याकरण की गलतियों के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं)
“I dreamt we walked together along the shore. We made satisfying small talk and laughed. This morning I found sand in my shoe and a seashell in my pocket. Was I only dreaming?”
Maya Angelou